हूमड़ पुराण के मंगलाचरण की पंक्तियों से ज्ञात होता है कि हूमड़ों के पूर्वजों का मूल निवास स्थान गुजरात , जिसे प्राचीन समय में लाट देश कहा जाता था , के साबरा कांठा जिला मुख्यालय से 65 किलो मीटर दूर खेड़ब्रह्मा ( प्राचीन ब्रह्म / देवपुरी ) तथा उसके पास से बहने वाली हिरण्य गंगा के गाँव जिन्हें वर्तमान में रायदेश कहा जाता है , में था । ये लोग खेड़ब्रह्मा से 50 कि.मी. की परिधि में बसे हुए थे ।
उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार पौराणिक काल में खेडब्रह्मा एक समृद्ध शहर था तथा त्रिवेणी ( काशाम्बी , मौमशकरी और हिरण्य गंगा ) संगम स्थल होने से प्रसिद्ध तीर्थस्थल था| वहाँ के क्षत्रिय लाट देश ( गुजरात ) के निवासी होने से लाडवंशी कहे जाते थे । इनके मुख्य कुल चौहान , चाणक्य , प्रतिहार और परमार थे । ये कुल , उपकुलों तथा शाखाओं में बटे हुए थे | इनमे से कई क्षत्रियों ने परिस्थितिवश क्षत्रिय संस्कारों का त्याग कर आजीविका हेतु वैश्य कर्म ( व्यापार ) अपना लिया । ऐसे क्षत्रियों को लाइवणिक भी कहा जाता था | वहाँ के कई क्षत्रिय एवं वैश्य ( पूर्व में क्षत्रिय ) जैन धर्म के आचार – व्यवहार का पालन करते थे और पंच णमोकार मंत्र , देवपूजा , गुरूपूजा , स्वाध्याय , सामायिक एवं पात्रदान यज्ञ को मानते थे । क्षत्रिय द्वारा जैन धर्म पालन के कारण नन्दी संघ के मुनियों द्वारा प्रभारी प्रचार था ।
जब नन्दी संघ के आचार्य मागनन्दी के शिष्य मुनि हेमचन्द्र खेड़ब्रह्मा पहुंचे तब इन्होंने आसपास के जैन मतावलंबियों एवं अन्य क्षत्रियों तथा वैश्यों को संगठित कर एक नये समाज की स्थापना की जो आज हूमड़ समाज के नाम से जाना जाता है ।
इन्होंने हूमड़ों के 18 गौत्र निर्धारित किये तथा क्षत्रियों के विविध संस्कारों को सम्पन्न कराने वाले पुराहितों को “ खेडुवा “ नाम दिया और उनके 9 गोत्र स्थापित किये ।
खेडब्रह्मा में नये समाज के संस्कार स्थल पर आज भी विशाल गोत्र कुण्ड ( बावड़ी ) है जिसमें हूमड़ों के 18 गोत्र की मातृवेदियों के गोखले ( मूर्ति स्थान ) मौजूद हैं ।उपरोक्त अध्ययनों से हूमड़ समाज का उत्पत्ति वर्ष विक्रम संवत् 101 के लगभग निश्चित होना प्रतीत होता है ।
वर्तमान खेड़ब्रह्मा के निकट देरोल नामक स्थान है , ( जो पूर्व में खेड़ब्रह्मा का ही भाग था ) , में नन्दीश्वर बावन जिन चैत्यालय एवं अन्य जैन मन्दिर के खंडर मौजूद है । वहाँ की 150 से अधिक प्रतिमाएं आज भी ईडरगढ़ , तारंगातीर्थ , भीलूडा तथा राजस्थान के अनेक स्थलों पर उपलब्ध है ।